चन्द्रघण्टा देवी की कहानी
चन्द्रघण्टा देवी की कहानी

चन्द्रघण्टा देवी की कहानी

देवी के स्वरूप की हुई चमत्कारिक उत्पत्ति


चन्द्रघण्टा देवी की कहानी (Story of Chandraghanta Devi)

शारदीय नवरात्र माता भगवती के नौ स्वरूपों की साधना करने का विशेष अवसर है। इस शुभ अवसर पर हम आपके लिए लेकर आए हैं नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति की कथा। यह माँ पार्वती का विवाहित स्वरूप है। नवरात्रि की तृतीया तिथि को की गई माँ चंद्रघंटा की साधना बहुत फलदायक होती है, और माना जाता है कि यह समस्त विरोधियों को भी दूर रखती हैं। तो चलिए इस लेख के माध्यम से जानते हैं, कि माँ को क्यों चंद्रघंटा के नाम से क्यों पुकारा जाता है, और इनकी पूजा करने से क्या लाभ होते हैं।

माँ आदिशक्ति के तीसरे शक्ति स्वरूप को माँ चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है, तथा नवरात्रि का तीसरा दिन माँ के इसी रूप को समर्पित है। देवी चंद्रघंटा के मुखमण्डल से सौम्यता और शांति के भाव झलकते हैं, और इनके दर्शन और पूजन मात्र से ही साधकों को सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है। वेदों में कहा गया है कि माँ चंद्रघंटा की आराधना करने से मनुष्य को अलौकिकता का आभास होता है।

**माँ चंद्रघंटा का स्वरूप ** देवी चंद्रघंटा का वाहन बाघ है। माता ने अपने मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र धारण किया हुआ है। माता के इस स्वरूप की दस भुजाएं हैं। उनके बाएं हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल हैं, और पांचवा बायां हाथ वरद मुद्रा में है। अपने चार दाहिने हाथों में माता ने कमल, तीर, धनुष और जपमाला धारण की है, और पांचवा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है।

**माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति की कथा ** जब माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया, तो महादेव की भांति ही अपने मस्तक पर अर्धचंद्र को धारण कर लिया। यह अर्धचंद्र मंदिर के घंटे के आकार जैसा प्रतीत हो रहा था, इसीलिए माता को चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाने लगा। एक समय की बात है, जब देवताओं और दानवों में भीषण युद्ध चल रहा था। देवता अपनी समस्त शक्ति के साथ भी असुरों को पराजित कर पाने में असमर्थ थे।

वे सभी अत्यंत भयभीत होकर त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की शरण में पहुंचे, और उनसे अपने प्राणों की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सभी देवताओं ने अपने विशेष अस्त्र-शस्त्र माता चंद्रघंटा को प्रदान किए, और माँ ने समस्त असुरों का नाश किया। माँ चंद्रघंटा की कृपा से देवताओं को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई।

तो यह थी माँ भगवती के चंद्रघंटा स्वरूप की उत्पत्ति की कथा।

**चलिए जानें नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को क्या-क्या लाभ होते हैं। ** ऐसी मान्यता है कि माँ चंद्रघंटा की साधना करने से घर में समृद्धि का वास होता है, और माता अपने सभी भक्तों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं, साथ ही उनका कल्याण करती हैं। शुक्र ग्रह माँ चंद्रघंटा द्वारा शासित होता है, इसीलिए नवरात्रि के तीसरे दिन माता की आराधना करने से साधकों पर शुक्र ग्रह की कृपा बनी रहती है। नवरात्रि के तीसरे दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में उपस्थित होता है, इसीलिए इस दिन उन्हें स्थिर मन के साथ माता की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि, ऐसा करने से उन्हें अपने आसपास माता की दिव्य शक्ति का आभास होता है। नवरात्रि की तृतीया पर विवाहिता स्त्रियों को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही या हलवा खिलाकर उन्हें भेंटस्वरूप कलश और मंदिर की घंटी देनी चाहिए। माँ चंद्रघंटा अपने उपासकों को निर्भय होने का आशीर्वाद देती हैं। साथ ही विद्यार्थियों को माँ की आराधना से विशेष लाभ मिलता है। देवी चंद्रघंटा अपने साधकों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं।

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