दर्श अमावस्या व्रत कथा | Darsh Amavasya Vrat 2024
सभी भक्तों को मेरा प्रणाम। आज आपको इस लेख के माध्यम से दर्श अमावस्या की कथा सुनने का सुअवसर प्राप्त होगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, पुराने समय की बात है कि समस्त बारह सिंह आत्माएं सोमरोस पर रहा करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करने के बाद एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा बचपन से ही अपनी माता की देखरेख में पली बढ़ी थी। ऐसे में उसे शुरुआती दिनों से ही हमेशा अपने पिता की कमी महसूस होती थी। जिसके कारण एक बार उसे सारी आत्माओं ने मिलकर धरती लोक पर राजा अमावसु की पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा।
दर्श अमावस्या कथा | Darsh Amavasya Katha
राजा अमावसु एक प्रसिद्ध और महान राजा थे जिन्होंने अपनी पुत्री अछोदा का लालन पोषण बहुत अच्छे से किया। ऐसे में पिता का प्यार पाकर अछोदा काफी प्रसन्न रहने लगी। इसके बदले में अछोदा पितृ लोक की आत्माओं का आभार जताना चाहती थी। इसके लिए उसने श्राद्ध का मार्ग अपनाया। इस कार्य को करने के लिए उसने सबसे अंधेरी रात को चुना। जिस दिन चंद्रमा आकाश में मौजूद नहीं होता, उस दिन वह पितृ आत्माओं का विधि विधान से पूजन करने लगी। पितृ भक्ति के कारण अछोदा को वो तमाम सुख मिले, जो उसे स्वर्ग में भी प्राप्त नहीं हो रहे थे। तभी से बिना चंद्रमा के आकाश को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या नाम से जाना जाने लगा।
मान्यता है कि इस दिन पितृ अपने लोक से धरती पर वापस आते हैं और अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, पितरों का श्राद्ध करते वक्त चंद्रमा दिखाई नहीं देना चाहिए। यही वजह है कि दर्श अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने की पृथा है। दर्श अमावस्या की व्रत कथा यहीं पर होती है समाप्त । अगर आप दर्श अमावस्या की पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में जानना चाहते हैं तो श्री मंदिर पर उपलब्ध अन्य लेखों को भी अवश्य पढ़ें।