हनुमान जन्म कथा

हनुमान जन्म कथा

ऐसे हुआ वीर हनुमान का जन्म


हनुमान जन्म कथा ( Hanuman Janam Katha )

हर वर्ष की चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम के प्रिय भक्त हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में भगवान राम की सेवा करने के लिए जन्म लिया था।

हनुमान जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा (Hanuman Jayanti Ki Pauranik Katha)

एक बार की बात है, ऋषि अंगिरा इंद्रदेव के लोक पधारे। इंद्रदेव ने उनका विधिवत् स्वागत सत्कार किया, और ऋषि के मनोरंजन हेतु पुंजिकस्थला नाम की अत्यंत रूपवती अप्सरा के नृत्य का आयोजन किया। पुंजिकस्थला ने अत्यंत मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया, परंतु मुनि स्वभाव होने के कारण ऋषि अंगिरा को इन सब में कोई रुचि नहीं थी, अतः वो नृत्य की ओर आकर्षित न होकर प्रभु के ध्यान में मग्न हो गए। जब पुंजिकस्थला का नृत्य समाप्त हुआ तो देवराज इंद्र ने पूछा- हे महर्षि! आपको इस अप्सरा का नृत्य कैसा लगा? इसपर ऋषि अंगिरा ने उत्तर दिया- हे देवराज! मुनि स्वभाव होने के कारण मेरी नृत्य या भोग विलास में कोई रुचि नहीं है, इस कारण मैंने इस अप्सरा के नृत्य पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया, अतः मैं इसकी प्रस्तुति के बारे में कुछ नहीं कह सकता।

ऋषि अंगिरा के द्वारा अपनी प्रशंसा न सुनकर पुंजिकस्थला उनपर क्रोधित हो उठी। इसपर ऋषि ने श्राप देकर कहा- हे पुंजिकस्थला! तू जिस रूप एवं सौंदर्य पर अभिमान करती है, वो नष्ट हो जायेगा, और तेरा अगला जन्म बंदरिया के रूप में होगा। मुनि का श्राप सुनकर पुंजिकस्थला को अपनी भूल का आभास हुआ। वो उनके चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगी, और क्षमा-याचना करने लगी। इस पर मुनि ने कहा- इस श्राप का प्रभाव तभी समाप्त होगा, जब तुझे संतान की प्राप्ति होगी। इसके पश्चात् पुंजिकस्थला ने वानरराज कुंजर की बेटी अंजना के रूप में जन्म लिया। अंजना का विवाह कपिराज केसरी से हुआ, इसके पश्चात् अंजना वन में रहकर पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या करने लगीं।

इधर, त्रेता युग में अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए अपने गुरु वशिष्ठ के निर्देशानुसार पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। ये यज्ञ श्रृंगी ऋषि द्वारा संपन्न कराई गई। यज्ञ की पूर्णाहुति होने के पश्चात् यज्ञ कुंड से अग्निदेव प्रकट हुए, और राजा दशरथ को एक खीर का पात्र देते हुए बोले- राजन! ये खीर आप अपनी रानियों को खिला देना। अवध नरेश ने वो खीर अपनी तीनों रानियों में बराबर बांट दिया। कौशल्या और सुमित्रा ने तो खीर ग्रहण कर ली, किंतु जब रानी कैकई खीर ग्रहण करने लगीं, तभी एक चील आई, और उस खीर का कुछ अंश झपट कर अपने मुंह में ले कर उड़ गई।

जब वो चील संतान प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही अंजना माता के आश्रम के ऊपर से उड़ रही थी, तब अंजना आसमान की ओर मुख करके कुछ देख रही थीं। उनका मुख खुला होने के कारण खीर का कुछ हिस्सा उनके मुंह में आ गिरा। ये बात जब उन्होंने अपने पति वानरराज केसरी को बताई, तो उन्होंने कहा- हे प्रिय! इसे भगवान शिव का प्रसाद मानकर ग्रहण कर लो। पति की बात मानकर अंजना ने वो खीर ग्रहण कर लिया, और इसके फलस्वरूप वो कुछ ही समय में गर्भवती हो गईं, और उनके गर्भ से अत्यंत बलशाली व तीव्र बुद्धि वाले केसरीनंदन हनुमान जी का जन्म हुआ।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

Address:

Firstprinciple AppsForBharat Private Limited 435, 1st Floor 17th Cross, 19th Main Rd, above Axis Bank, Sector 4, HSR Layout, Bengaluru, Karnataka 560102

Play StoreApp Store

हमे फॉलो करें

facebookinstagramtwitterwhatsapp

© 2025 SriMandir, Inc. All rights reserved.