अक्षय तृतीया व्रत कथा

अक्षय तृतीया व्रत कथा

जीवन से दूर होती है ग़रीबी


अक्षय तृतीया व्रत कथा (Akshay Tritiya Vrat Katha)

एक समय की बात है जब एक धर्मदास नाम का शिष्टाचारी व्यक्ति हुआ करता था, जिसकी धर्म-कर्म में काफी आस्था थी। वह स्वभाव से दानी था लेकिन गरीब होने के कारण उसे हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण की चिंता रहती थी। एक दिन किसी ने उसे अक्षय तृतीया के व्रत और इसके महत्व के बारे में बताया।

धर्म में अपने अटूट विश्वास के चलते, धर्मदास ने इस व्रत को करने का निश्चय किया। व्रत की विधि का पालन करते हुए उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान किया और फिर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। इसके साथ ही उन्होंने अपनी क्षमता से बढ़कर, जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि जैसी वस्तुएं भगवान के चरणों में अर्पित कर ब्राह्मणों को दान कर दी।

यह सब देखकर उनकी पत्नी ने उन्हें रोकने का भी प्रयास किया, क्योंकि उनका परिवार निर्धन था, और इतने दान से उनकी परिस्थिति और भी खराब हो जाती। इसके अलावा, बुढ़ापे के कारण वह कई रोगों से भी पीड़ित थे, लेकिन धर्मदास ने इन सभी बातों की बिना परवाह किए अपना व्रत विधि पूर्वक पूर्ण किया। अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करते हुए वह जीवन भर अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर व्रत व दान-पुण्य करते रहे।

इस पावन व्रत को करने के फलस्वरूप धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। अपने अच्छे कर्मों की वजह से धर्मदास को राजयोग के साथ वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई। उनके राज्य में धन व दौलत समेत किसी भी प्रकार के सुख की कमी नहीं थी। इन सुखों के बाद भी वह कभी लोभी नहीं बने और सदैव सदाचार का पालन करते रहे। उन पर ईश्वर की कृपा बनी रही और उन्हें अक्षय तृतीया के पुण्य की प्राप्ति भी होती रही।

धर्मदास की तरह अक्षय तृतीया की कथा को सच्चे मन से सुनने वालों को धन, वैभव, यश व सुखों की प्राप्ति होती है। लालच को त्याग कर इस दिन दान-पुण्य करने से भगवान की कृपा हमेशा आप पर बनी रहती है।

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