ऋषि वात्स्यायन कौन थे? (Who was Vatsyayan Rishi?)
भारत में कई महान ऋषि हुए जिन्होंने प्राचीन समय में महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिससे वे प्रसिद्ध भी हुए। ऐसे ही एक ऋषि थे, वात्स्यायन ऋषि। हिंदू धर्म में 4 पुरुषार्थ बताए गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हीं चारों विषयों पर कई ऋषियों ने ग्रंथ भी लिखे है। इनमें से वात्स्यायन ऋषि ने काम पर एक ग्रंथ लिखा, जो कि कामसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है। दुनियाभर की कई भाषाओं में इसका अनुवाद भी हो चुका है। कामसूत्र को शास्त्रीय दर्जा भी प्राप्त है। 1870 ई. में इस ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ, जिसके बाद से यह काफी प्रचलित हो गया। वात्स्यायन जी ने कामसूत्र में न सिर्फ दांपत्य जीवन का शृंगार किया है बल्कि कला, शिल्पकला व साहित्य को भी संपादित किया है। कहते हैं कि अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है।
ऋषि वात्स्यायन का जीवन परिचय (Biography of Vatsyayan Rishi)
इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार, वात्स्यायन ऋषि भारत के एक प्राचीन दार्शनिक थे। इनका जन्म गुप्त वंश के समय का माना जाता है। हालांकि, इतिहासकारों में वात्स्यायन जी के नाम और उनके जीवनकाल को लेकर काफी मतभेद रहता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नीतिसार के रचयिता कामंदक, जो कि चाणक्य के प्रधान शिष्य थे, वही वात्स्यायन ऋषि थे। वहीं, दूसरी तरफ वासवदत्ता ग्रंथ में कामसूत्र के रचनाकार का नाम मल्लनाग बताया गया है। माना जाता है कि वात्स्यायन का पूरा नाम महर्षि मल्लनाग वात्स्यायन ही था। इसके अतिरिक्त वराहमिहिर की बृहत संहिता और कालिदास की कविताओं में वात्स्यायन जी के कामसूत्र का जिक्र किया गया है। बृहत संहिता 6 वीं सदी में संस्कृत भाषा में लिखी गई पुस्तक है। ऐसे में अंदाजा लगाया जाता है कि वात्स्यायन ऋषि 5 वीं सदी में थे।
कहते हैं कि महान रचनाकार वात्स्यायन ऋषि ब्रह्मचारी थे। उनके परिवार या पत्नी का जिक्र किसी भी पुराण में नहीं मिलता है। ब्रह्मचारी होने के बावजूद उन्हें कामुक विषय की गहन समझ थी। कहा जाता है कि वात्स्यायन जी ने नगरवधुओ, वेश्याओं और वैश्यालयों में जाकर बातचीत करके कामसूत्र को लिखा। बताते हैं कि वात्स्यायन जी ने अपने जीवनकाल का लंबा समय उत्तर प्रदेश के बनारस में बिताया था।
चारों वेदों के ज्ञाता वात्स्यायन ऋषि ने कामुकता विषय को कई नए और खूबसूरत आयाम दिए हैं। इस ग्रंथ में 64 कलाओं का जिक्र किया गया है, जिसमें संगीत, धर्म, ध्वनि, समाज, लोक आदि बहुत कुछ मौजूद है। कामसूत्र कोई एक ही किताब नहीं है, इसमें 1250 छंद हैं, जिन्हें 36 अध्यायों में बांटा गया है। इसकी 64 धाराएं हैं, जिन्हें कुल 7 किताबों में विभाजित किया गया है।
हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सबसे पहले नंदी (भगवान शिव के मुख्य गण) ने एक हजार अध्यायों के कामशास्त्र की रचना की थी, जिसे आगे चलकर विद्वान औद्दालिकी श्वेतकेतु व बाभ्रव्य पांचाल ने संक्षिप्त रूपों में लिखा। हालांकि, महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित ग्रंथ कामसूत्र पहले की अपेक्षा ज्यादा संक्षिप्त रूप में है। कामसूत्रों से तत्कालीन (1700 वर्ष पूर्व के) समाज के रीति-रिवाजों की जानकारी भी मिलती है।
ऋषि वात्स्यायन के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Rishi Vatsyayan)
महर्षि वात्स्यायन ने पहली बार वैज्ञानिक तौर पर बताया कि आखिर आकर्षण का विज्ञान क्या है? उनका मानना था कि कामुकता के विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए, इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। इसी उद्देश्य से ही उन्होंने कामसूत्र ग्रंथ की रचना की। उन्होंने अपनी किताब के माध्यम से इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि लोग कामसूत्र के संबंध में बेहतर जानकारी हासिल कर सकें।
कामसूत्र के अतिरिक्त वात्स्यायन जी की रचनाओं में न्यायसूत्र नामक ग्रंथ भी काफी प्रसिद्ध है। उन्होंने यह रचना आमतौर पर आध्यात्मिक उदारवाद पर थी, जो जन्म और जीवन पर आधारित है। इसमें मोक्ष का भी उल्लेख मिलता है।
ऋषि वात्स्यायन से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Rishi Vatsyayan)
- कहते हैं कि वात्स्यायन ऋषि ब्रह्मचारी व संयासी थे। इसके बावजूद उन्होंने कामसूत्र जैसे ग्रंथ की रचना की।
- कहा जाता है कि वात्स्यायन ऋषि का जन्म बिहार में हुआ था।
- वात्स्यायन महर्षि वात्स्यायन के गोत्र का नाम है, जोकि सबसे ज्यादा प्रचलित है। पंचतंत्र में इन्हें वैद्यक शास्त्रज्ञ के नाम से भी पुकारा गया है।