माँ कालरात्रि के मंत्र
मां दुर्गा के नौ रूपों में सातवां स्वरूप मां कालरात्रि का है। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है, इस दिन महासप्तमी भी कहा जाता है।
मां दुर्गा ने ये अवतार बुराई का नाश करने के लिए लिया था। मां ने इस अवतार में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे दानवों का वध किया था।
मां दुर्गा के इस स्वरूप को सबसे शक्तिशाली माना गया है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन मां का ये स्वरूप सदैव ही शुभ फल देने वाली है। मां कालरात्रि की उपासना से बुरे शक्तियों से छुटकारा मिलता है।
मां कालरात्रि के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र:
क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
मां कालरात्रि का पूजन मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र जाप विधि:
मां कालरात्रि के बीज मंत्र का जाप एक माला यानी 108 बार करना चाहिए। मां के पूजन मंत्र का जाप करने से साधक को भय से मुक्ति मिलता है। मंत्र जाप और पूजा के बाद आखिरी में मां को गुड़ का भोग लगा उस प्रसाद को ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए।
मां कालरात्रि अपने इस स्वरूप में चार भुजा धारण कर रखी हैं। जिसमें ऊपर की दाहिनी भुजा से मां भक्तों को वर प्रदान करती हैं और निचली दायीं भुजा से अभय देती हैं।
मां अपनी बायीं भुजाओं में खड्ग और कंटीला मूसल धारण कर रखी हैं। हालांकि, मां की कुछ प्रतिमाओं में उनके हाथों में खड्ग और कटोरी भी दिखता है।
मां कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं। माता कालरात्रि का वाहन गर्दभ है। मां के इस स्वरूप के उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि से मुक्ति मिलती है।