Dhanteras Katha | धनतेरस की पौराणिक कथा

धनतेरस की पौराणिक कथा

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा क्यों की जाती है? जानें धनतेरस की पौराणिक कथा और इस शुभ दिन से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं के रहस्य, जो आपके जीवन में समृद्धि और खुशहाली लाते हैं।


धनतेरस की पौराणिक कथा | Dhanteras Katha

आज हम लोग धनतेरस से जुड़ी हुई पौराणिक कथा लेकर आए हैं, चलिए जानते हैं किस प्रकार हुई धनतेरस मनाने की शुरूआत-

एक बार भगवान विष्णु ने धरती लोक में विचरण करने का निश्चय किया, जब उन्होंने यह बात लक्ष्मी जी को बताई, तो उन्होंने भी साथ में चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि, “अगर तुम मेरे साथ चलना चाहती हो तो तुम्हें मेरी आज्ञा का पालना करना होगा और मेरे कहा मानना पड़ेगा।”

लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु की शर्त मान ली और उनके साथ धरती पर विचरण करने निकल पड़ीं। धरती पर पहुंचने के बाद, भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी एक जगह रुके और वहां विष्णु जी ने उनसे कहा कि, “मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ, जब तक मैं न आऊं, तुम कहीं मत जाना।”

विष्णु जी के जाने पर लक्ष्मी जी के मन में यह जिज्ञासा पैदा हो गई कि आखिरकार दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो स्वामी मुझे उनके पीछे आने के लिए मना कर रहे हैं।

लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और अपनी जिज्ञासा को शांत कर करने के लिए वह भी विष्णु जी के पीछे-पीछे चल पड़ीं। थोड़ी दूर जाने पर, उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई पड़ा, जिसमें पीले फूल खिले हुए थे। सरसों के फूलों की सुंदरता देखकर, माता लक्ष्मी मंत्रमुग्ध हो गईं और उन्हें तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं। इसके बाद थोड़ा और चलने पर, उन्हें एक गन्ने का खेत दिखाई दिया। लक्ष्मी जी ने गन्ने तोड़े और उसका रस पीने लगीं। उसी क्षण भगवान विष्णु जी वहां प्रकट हो गए।

विष्णु जी लक्ष्मी जी को देखकर उन पर क्रोधित हो गए और बोले, मैंने तुम्हें इधर आने से मना किया था पर तुम नहीं मानी और किसान के खेत में चोरी का अपराध भी कर बैठी।

अब तुम्हें इस अपराध से मुक्ति पाने के लिए इस किसान की 12 सालों तक सेवा करनी पड़ेगी। ऐसा कहकर भगवान उन्हें वहां छोड़कर क्षीर सागर लौट गए।

इसके पश्चात्, लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर में भेष बदलकर रहने लगीं। एक दिन लक्ष्मी जी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान करके पहले मेरे द्वारा बनाई गई लक्ष्मी जी की प्रतिमा का पूजन करो और उसके बाद रसोई में भोजन बनाओं। तुम पूजा में देवी से सच्चे मन से जो भी मांगोगी, वह तुम्हें मिल जाएगा।

किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया, लक्ष्मी जी की पूजा के फलस्वरूप किसान का घर धन-धान्य के परिपूर्ण हो गया। लक्ष्मी जी की कृपा से किसान को सभी सुखों और समृद्धि की प्राप्ति हुई। इस प्रकार किसान के 12 वर्ष आनंदपूर्वक कट गए।

12 वर्षों के बाद, लक्ष्मी जी वहां से जाने के लिए तैयार हो गईं और विष्णु जी उन्हें वापिस ले जाने के लिए प्रकट हो गए। किसान ने उन्हें भेजने से मना कर दिया। इसपर भगवान विष्णु बोले, “इन्हें कौन जाने देना चाहता है, लेकिन यह एक जगह नहीं ठहरतीं, मेरे श्राप के कारण यह 12 वर्षों से तुम्हारी सेवा कर रही थीं और अब इनके जाने का समय हो गया है।”

किसान हटपूर्वक बोला कि मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। इस संवाद में लक्ष्मी जी किसान से बोलीं कि, “यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे घर में हमेशा मेरा वास हो तो मैं जैसा कह रही हूं, तुम ठीक वैसा ही करना। कल तेरस है, तुम घर को लीप-पोतकर स्वच्छ कर लेना। रात्रि में घी का दीपक जला कर रखना, शाम के समय मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में कुछ सिक्के भरकर रख देना, मैं उस कलश में निवास करूंगी, किंतु मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से तुम्हारे घर में सदैव निवास करूंगी।”

ऐसा कहकर लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गईं। किसान ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार, उनका विधि पूर्वक पूजन किया। लक्ष्मी जी के आशीर्वाद से उसके घर में हमेशा समृद्धि का निवास बना रहा।

मान्यता है कि तभी से तेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा होती है और धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस कथा को पढ़ने वाले सभी भक्तों पर भी इसी प्रकार माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहे।

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