माँ कात्यायनी के मंत्र
नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से मां दुर्गा के छठे स्वरूप को मां कात्यायनी के रूप में पूजते हैं। मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन यानी षष्ठी को की जाती है।
मां कात्यायनी को अमोघ फलदायिनी भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां दुर्गा के कात्यायनी रूप की ही पूजा की थीं। मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र:
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
माँ कात्यायनी का पूजन मंत्र:
ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:।
चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मंत्र जाप विधि:
माँ कात्यायनी मंत्र का कम से कम 51 बार जाप करना ही चाहिए। साधक चाहें तो इससे अधिक बार भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
इन मंत्रों का 1,25,000 बार भी जाप किया जाता है।
माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप में मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी इस स्वरूप में चार भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र और कमल का पुष्प धारण कर रखी हैं।
माँ दुर्गा के इस स्वरूप की आराधना से रोग, शोक, संताप और भय से मुक्ति मिलती है। विद्यार्थी को मां कात्यायनी की पूजा जरूर करनी चाहिए। इससे उन्हें सफलता और ज्ञान की प्राप्ति होती है।